खुद को भुला,
बस लड़ रहा था जिंदगी की उलझनों से,
कलम छूटती चली जा रही थी,
चारों तरफ़ उदासियाँ छा रही थी,
अरमान मरने लगे थे,
उम्मीदें कहीं दब गए थी,
क्योंकि
बहुत दिनों से मैं दूर था अपने दिल से,
अपनी कलम से ।
हुनर को अपने दबा कर,
खो गया था किसी अंधेरे में जा कर,
तोबा होने लगी थी जिंदगी से,
क्योंकि
बहुत दिनों से मैं दूर था अपने दिल से,
अपनी कलम से ।
हर रास्ता कठिन हो गया था,
हर पल मुश्किल हो गया था,
दूर-दूर तक कुछ दिखाई नहीं दे रहा था,