बस का सफ़र एक अजनबी के साथ Part-2

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बस का सफ़र एक अजनबी के साथ Part-2

मुझे नहीं लगता आप खुशी से नोकरी करती हैं । उसकी यह बात काफ़ी देर तक मेरे कानों में गूंजती रही, अगले दिन मैंने कहा, मैं चाहती थी मैं घर में रहूँ , अपने बच्चों के साथ अपने पति के साथ खूब समय बिताऊं, सुबह उनके लिए प्यार से नाश्ता बनाऊं, बच्चों का स्कूल से आने का इंतजार करूँ, उन्हें खुद पढ़ाऊँ, शाम को पति का इंतजार करूँ, रात को सब साथ बैठे बातें करें खाना खायें, आज मैं एक बिना रुके चलने वाली मशीन बन गई हूँ, सुबह जल्दी उठना, जल्दी-जल्दी में सभी काम करने , पहले बच्चों को तैयार करना फिर पति के लिए नाश्ता बनाना ओर फिर खुद के लिए समय बचता ही कहाँ है, पूरा दिन भागते-भागते निकल जाता है, अब तो ऐसा लगता है इतना समय भी नहीं है किसीके साथ अपने दिल की बात भी कर सकूं ।

आज तो मैं बस बोलती गई वो सुनता रहा, आज मुझे मेरे मन कुछ हल्का-हल्का लगा, मुझे नहीं पता मैंने उसे इतना सब कुछ क्यों बताया मगर आज मैं पहले से ज्यादा खुश थी ।

 अगले दिन बस में भीड़ इतनी थी की पता ही नहीं चला वो कहाँ बैठा है, कई दिन बीत गई उससे कोई बात नहीं हुई, अब मैं भी उससे बात करना चाहती थी, बस सफ़र के यह 20 मिनट मेरे लिए खास हो गए थे, जैसे मैं घर से कॉलेज के लिए नहीं बस के इस सफ़र के लिए निकलती हूँ, मुझे उससे बात करना अच्छा लगता, शायद इस लिए की वो मेरी बातें सुनता था। मेरे अंदर दबी जो बातें मुझे परेशान कर रही थी वो बाहर निकल रही थी और मेरा मन शांत हो रहा था ।

उस दिन उसकी बगल वाली सीट पर कोई बैठा था, मैं उसके पीछे दो सीट खाली पड़ी थी वहाँ बैठ गई, वो अपनी सीट से उठा और मेरे पास आ कर बैठ गया ओर कहने लगा, कई दिन से मैं आपके बारे में ही सोच रहा हूँ, पहले मुझे लगता था मैं बहुत काम करता हूँ, घर से दूर रहता हूँ  लेकिन आपकी बातें सुन कर महसूस हुआ, मेरा काम तो कुछ भी नहीं है । वो बोलता या रहा था मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे रेगिस्तान में ठंडी हवा चल रही हो, हल्की-हल्की बारिश हो रही हो, उसकी बातें मेरी अंतरात्मा को ठंडक दे रही थी । मैं आज भी उतना ही काम कर रही  थी लेकिन अब वो मुझे मजबूरी या बोझ नहीं लग रहा था । शायद मैं अपने काम से दुखी नहीं थी, किसी को मेरे काम की कदर नहीं थी मैं इस लिए दुखी थी ।

मैं अक्सर रात को थक-हार कर कितनी-कितनी देर शावर के नीचे बैठी रहती की शायद मेरे तन-मन को कुछ ठंडक मिल जाए मगर ऐसा कभी नहीं हुआ , जो ठंडक उसकी बातों से मिल रही थी पहले कभी नहीं मिली, मैं सोच रही थी जाने मेरे जैसी कितनी ही औरतें होंगी जो अपने अंदर की बातें अपने अंदर ही दबाए बैठी होंगी कोई सुनने वाला नहीं होगा ओर उन्हें पता भी  नहीं  चल रहा होगा कि वो ऐसी क्यों और कैसे हो गई ।

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Hello

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