बस का सफ़र एक अजनबी के साथ

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बस का सफ़र एक अजनबी के साथ

एक दिन किसी ने मुझे कहा आप यहाँ बैठ जाओ, मैं हर रोज लोकल बस से कॉलेज जाती थी, बस में अक्सर भीड़ होती थी, इस लिए मुझे खड़े होकर ही जाना पड़ता था, उस दिन पहली बार किसीने कहा आप यहाँ बैठ जाओ, मैं बैठ गई, अब अक्सर ऐसा होने लगा वो मुझे देखता ओर कहता आप यहाँ बैठ जाओ, अब मुझे अजीब लगने लगा, मैं उस से दूर रहने लगी, फिर भी कभी-कभी भीड़ के कारण आगे खिसकते-खिसकते मैं उस तक पहुंच जाती और वो अपनी सीट छोड़ देता ।

एक दिन बस में भीड़ नहीं थी, उसके बगल वाली सीट खाली थी, बस में कुछ सीट ओर खाली थी , उसकी आंखें मुझे देख रही थी मुझे लगा जैसे कह रही हों यहाँ आ कर बैठ जाओ, मैं दूसरी सीट पर बैठ गई, शायद उसे  अच्छा नहीं लगा, पर मुझे क्या ।

अब अक्सर आदत सी हो गई , बस में चढ़ते ही देखना वो कहाँ बैठा है, एक दिन में बस में चढ़ी तो देखा वो सामने वाली सीट पर ही बैठा है और उसके बगल की सीट खाली है मजबूरन मुझे उस सीट पर बैठना पड़ा, उसने कुछ देर बाद मुझसे पूछा आप कहाँ जाती हैं? मैं जवाब नहीं देना चाहती थी मगर वो इतने दिन से मुझे बैठने की सीट दे रहा था इस लिए जवाब देना पड़ा, मैंने कहा कॉलिज, आप पढ़ती हैं ? मैंने कहा नहीं पढ़ाती हूँ, उसने कहा लगता नहीं, उसका कहना था मुझे देखकर मेरी उम्र का पता नहीं लगता, मैंने बताना उचित समझा कि मेरे दो बच्चे हैं जो स्कूल जाते हैं, उसने फिर कहा लगता नहीं । उस दिन बस इतनी बाचित हुई ।

फिर कई दिन ऐसे ही निकल गए, ना उसे सीट खाली करने का मौका मिला ओर  ना हमें साथ बैठने का । उस दिन जब मैं बस में चढ़ी तो देखा वह भी खड़ा था, बस में अभी और सवारी चढ़ रही थी इस लिए आगे बढ़ते-बढ़ते मैं उसके पास पहुँच गई, उसने कहा sorry, मैंने हल्की मुस्कान के साथ इशारे में ही कहा कोई बात नहीं । अब तुम्हारे पास भी सीट नहीं है तो मेरे लिए कहाँ से खाली करोगे ।

शनिवार का दिन था बस में भीड़ नहीं थी, मैंने देखा दो सीट आगे खाली पड़ी हैं एक पीछे ओर एक उसकी बगल वाली, मैंने एक मिनट में फैंसला करना था कि कहाँ बैठूं, पता नहीं क्यों में उसकी बगल वाली सीट पर जा बैठी, आज वो अपने बारे में बताने लगा, मेरा एक बेटा है वह परिवार के साथ दूसरी शहर में रहता है, मैं यहाँ नोकरी करता हूँ, रोज ऑफिस के लिए इस बस से जाता हूँ । मैं बहुत पहले से आपको देख रहा था आपके बस स्टॉप तक आते आते बस भर जाती है इस लिए आपको अक्सर खड़े रहकर जाना पड़ता है । यहाँ से मैं  बैठता हूँ बस खाली होती है । मैंने कहा अब तो आदत हो गई है ।

बस ऐसे ही उस से बातें होने लगी, अब वो अजनवी भी नहीं लगता था, 20 मिनट के सफ़र में अब उस से काफी बातें होने लगी, उसकी आवाज में कुछ था जो मैं उसकी बातें सुनती रहती, मुझे वो दूसरों का ख्याल रखने वाला लगा, वो मेरी बात ध्यान से सुनता, मुझे भी लंबे समय के बाद कोई बात करने वाला मिला ।

उस दिन उसने मुझसे कहा मुझे नहीं लगता आप खुशी से नोकरी करती हैं, मुझे लगा किसी ने मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया, फिर मुझे लगा कोई तो है जो मुझे समझा । मैंने कहा पता नहीं, अपनी खुशियां तो कब की पीछे छूट गई, अब तो सब मजबूरियां हैं, कहते हुए मैं बस से उतार गई ।

बस का सफ़र एक अजनबी के साथ Part - 2

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